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रूटीन चोलेंजियोग्राफी न्यायसंगत नहीं है।
Tue - April 26, 2011 9:53 am  |  Article Hits:6811  |  A+ | a-
रूटीन चोलेंजियोग्राफी उचित नहीं है
रूटीन चोलेंजियोग्राफी उचित नहीं है
पित्त पथरी रोग के लिए लैप्रोस्कोपिक कोलेसिस्टेक्टोमी के दौरान नियमित ऑन-टेबल कोलेजनोग्राफी (ओटीसी) की उपयोगिता का मूल्यांकन करने के लिए एक यादृच्छिक नैदानिक ​​परीक्षण किया गया था। विधियाँ: पित्त शूल या कोलेसिस्टिटिस के लिए एक अच्छी प्रतिष्ठा वाले कुछ 190 रोगियों और कोलेडोकोलिथियसिस के लिए एक कम पूर्वानुमानित जोखिम को वैकल्पिक रूप से ऐच्छिक लेप्रोस्कोपिक कोलेसिस्टेक्टोमी से गुजरना पड़ा (99 रोगी या ओटीसी के साथ वैकल्पिक लेप्रोस्कोपिक कोलेसिस्टेक्टोमी। दो समूहों के लिए अंतःक्रियात्मक निष्कर्ष और पश्चात के परिणामों की तुलना की गई। मुख्य पित्त माप में सामान्य पित्त नली की पथरी की घटना थी।

चोलेंजियोग्राफी (Chrono-geography) एक ऐसी शाखा है जो इतिहास, भूगोल, अर्थशास्त्र और समाजशास्त्र के विभिन्न दलों से प्रभावित होती हुई समय की अध्ययन करती है। इसका उद्देश्य व्यक्ति या समुदाय की स्थानीय विकास विवेचना करना है, जिससे वे अपनी संस्कृति और अन्य पहलुओं की गहराई समझ सकें। चोलेंजियोग्राफी के माध्यम से इतिहास के उद्देश्य और उसके प्रभावों का अध्ययन करना संभव होता है।

रूटीन चोलेंजियोग्राफी एक व्यक्ति के दैनिक जीवन या व्यवहार के आधार पर समय की अध्ययन करती है। इसमें लोगों के जीवन में होने वाली नियमित गतिविधियों के आधार पर उनके जीवन के पहलुओं को समझा जाता है। हालांकि, रूटीन चोलेंजियोग्राफी बहुत हद तक संज्ञानात्मक होती है और इसमें विशेष रूप से इतिहास, भूगोल और समाजशास्त्र के असंगत तत्व होते हैं।

चोलेंजियोग्राफी का उद्देश्य शायद इससे बेहतर समझाया जा सकता है कि यह एक समय चोलेंजियोग्राफी का उद्देश्य शायद इससे बेहतर समझाया जा सकता है कि यह एक समय, स्थान और संदर्भ से सम्बंधित अध्ययन है। इसमें समय, स्थान और समाज के बीच संबंधों की अध्ययन की जाती है, जो समय के साथ बदलते हैं। इसलिए, यह इतिहास, भूगोल और समाजशास्त्र से प्रभावित होती हुई समय की अध्ययन करती है।

रूटीन चोलेंजियोग्राफी का उपयोग लोगों की गतिविधियों को समझने के लिए किया जाता है। इसमें व्यक्ति या समुदाय की दैनिक जीवन गतिविधियों का अध्ययन किया जाता है, जैसे कि उनके भोजन, परिवहन, काम, खेल-कूद आदि। इसे अनुशासन और नियमितता का एक पहलु भी माना जा सकता है।

हालांकि, रूटीन चोलेंजियोग्राफी अपनी संज्ञानात्मक नीचे तक सीमित होती है और इसमें कुछ नकारात्मक पहलु होते हैं। इसमें समय और स्थान के संबंध की सीमाएं बहुत संज्ञानात्मक होती हैं और इसे अक्सर दोहराया जाता है। इसलिए, चोलेंजियोग्राफ चोलेंजियोग्राफी को विस्तृत रूप से अध्ययन करने से पहले उसके सीमाओं को समझना आवश्यक होता है। इसमें कुछ भावनात्मक तत्व शामिल होते हैं जो सीमाओं का आकार बढ़ाते हैं जैसे कि समय की नियतता, समाज और स्थान के प्रभाव आदि।

चोलेंजियोग्राफी के उपयोग के संदर्भ में, यह एक उपयोगी और उपयोगी अध्ययन है जो लोगों की गतिविधियों और स्थानों के प्रभाव को समझने में मदद करता है। इसके अलावा, चोलेंजियोग्राफी से व्यक्ति या समुदाय की इतिहास, संस्कृति और विकास को भी समझा जा सकता है। इससे हम जान सकते हैं कि लोग कैसे जीते थे, कैसे खाते थे, कैसे खेलते थे आदि। इससे हमें अनेक पहलुओं को जानने का मौका मिलता है जो हमारे वर्तमान समय की विविधता की समझ में मदद करते हैं।

इसलिए, रूटीन चोलेंजियोग्राफी न केवल रूटीन के बारे में बल्कि समय के संबंध में सामान्य जानकारी को भी बताती है। इसका उपयोग इतिहास, समाज और भूगोल की अध्ययन के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है। चोलेंजियोग्राफी अध्ययन करने से हम लोगों की जीवन शैली और विचारधारा को समझ सकते हैं, जो हमें वर्तमान समय की समझ में मदद करता है।

अंततः, रूटीन चोलेंजियोग्राफी उचित या अच्छा नहीं होता है क्योंकि यह संज्ञानात्मक नीचे तक सीमित होता है और इसमें नकारात्मक पहलु भी होते हैं। हालांकि, इस विषय का अध्ययन उपयोगी हो सकता है जब इससे समझा जाना चाहिए कि लोगों के जीवन में नियमितता और अनुशासन कैसे मददगार होते हैं। इस तरह के अध्ययन से हमें अनेक जानकारियां प्राप्त होती हैं जो हमें वर्तमान समय की समझ में मदद करती हैं। इसके अलावा, चोलेंजियोग्राफी से इतिहास के विभिन्न पहलुओं को भी समझा जा सकता है। इससे हम जान सकते हैं कि इतिहास के विभिन्न दौरों में लोगों की जीवन शैली कैसी थी और कैसे उनके समय के विभिन्न स्थानों में विकास हुआ। यह अध्ययन हमें उस समय की स्थितियों, समाज की व्यवस्था, अर्थव्यवस्था और राजनीतिक परिस्थितियों को समझने में मदद करता है।

चोलेंजियोग्राफी का उपयोग वर्तमान समय में भी किया जाता है। इससे हम लोगों की जीवन शैली और उनके स्थानों के बीच के संबंधों को समझ सकते हैं। यह हमें वर्तमान समय की समझ में मदद करता है, जैसे कि लोग कैसे अपने समय का उपयोग करते हैं, कैसे वे खाने-पीने के सामान को प्राप्त करते हैं, कैसे वे अपनी व्यवस्थाओं को संभालते हैं आदि।

इसलिए, चोलेंजियोग्राफी एक महत्वपूर्ण अध्ययन है जो समय, स्थान और समाज के बीच संबंधों को समझने में मदद करता है। रूटीन चोलेंजियोग्राफ ी उचित या अच्छा नहीं होता है क्योंकि यह संज्ञानात्मक नीचे तक सीमित होता है और इसमें नकारात्मक पहलु भी होते हैं। हालांकि, इस विषय का अध्ययन उपयोगी हो सकता है जब इससे समझा जाना चाहिए कि लोगों के जीवन में नियमितता और अनुशासन कैसे मददगार होते हैं। इस तरह के अध्ययन से हमें अनेक जानकारियां प्राप्त होती हैं जो हमें वर्तमान समय की समझ में मदद करती हैं।

चोलेंजियोग्राफी के अध्ययन से हम लोगों की जीवन शैली, उनके संसाधनों का उपयोग, स्थानों के बीच के संबंधों को समझ सकते हैं। यह हमें वर्तमान समय की समझ में मदद करता है, जैसे कि लोग कैसे अपने समय का उपयोग करते हैं, कैसे वे खाने-पीने के सामान को प्राप्त करते हैं, कैसे वे अपनी व्यवस्थाओं को संभालते हैं आदि।

इस तरह, चोलेंजियोग्राफी एक अध्ययन है जो समय, स्थान और समाज के बीच संबंधों को समझने में मदद करता है। इसका अध्ययन हमें अनेक जानकारियां प्राप्त होती हैं जो हमें वर्तमान समय की समझ में मदद करती हैं। चोलेंजियोग्राफी एक व्यापक अध्ययन है जो हमें विभिन्न जीवन शैलियों, समाजों और स्थानों को समझने में मदद करता है।

इसके अलावा, चोलेंजियोग्राफी के अध्ययन से हमें अनेक जानकारियां प्राप्त होती हैं, जैसे कि विभिन्न स्थानों की भौतिक विशेषताएं, जीवन शैलियों का अंतर, समाज की व्यवस्था, विभिन्न समयों में इतिहास आदि। इससे हम अपनी समझ को बढ़ाते हुए अपने समाज, देश और विश्व के संबंधों को भी समझ सकते हैं।

इसलिए, रूटीन चोलेंजियोग्राफी उचित या अच्छा नहीं होता है क्योंकि यह सीमित होता है और उसमें संज्ञानात्मक एवं नकारात्मक दोनों पहलुओं को शामिल किया जाता है। इसके बजाय, हमें चोलेंजियोग्राफी के विभिन्न विषयों का अध्ययन करना चाहिए जो हमारी समझ को बढ़ाते हैं और हमें अपनी दुनिया के संबंधों को समझने में मदद करते हैं।

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